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- प्रियंका शाह
जिस प्रकृति में हमने जन्म लिया, आओ बचाएँ उस अमूल्य गोद को।
उजड़ न जाए कहीं इस थल-जल-नभ से, ईश्वर के दिए इस अमूल्य धन से, उसका वो हरियाली का आँचल, जो महकाता था हर घर-आँगन।
जिस प्रकृति से जीवन बना है सरल क्यों बन गया वह अब इतना विरल, आओ सजाएँ आज फिर इसकी कोख, प्रेम के फूल खिलाएँ हम इसकी गोद।
चारों दिशाओं में हो लहराता आँचल, हरा-भरा हो हर घर-आँगन पूजे गंगा-जमुना-सरस्वती को जिसने दिया जीवन जन-जन को ।
सागर की हर लहर से उठती हैं यह आस, प्रेम से हो अब प्रकृति का सृजन और साज, ईश्वर के दिए इस अमूल्य धन को, पूजते रहें हम बारम्बार। |
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